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आसमान की ऊँचाई पे वो नहीं टिक पाता है
जो अहंकार से घिरा हो और खुद को खुदा बताता है
उड़ना अगर है तुझको ऊँचाई की ऊँचाई से
फेक कर देख अहंकार की सीढ़ी
फिर नाप खुद को मेहनत की गहरी से
उड़ता वही है जो खुद को हलका पाता है
भारी अहंकार किसी को भी ऊपर कभी ना रख पाता है
देख अपने सपनो को खुली आँखो की उम्मीद में
दौड़ उसके पीछे जैसे रक्त कभी न रुके शरीर में
जिस दिन तु थक गया अपने ही लक्ष्य के उजाले में
फिर से उठ फिर से दौड़ अभी भी है सपने इन आँखो में
लगे जब भी डर आने वाली अनेक समस्याओं से
दिल में ये ठान ले जैसे जीत चुका हो पहले ही इस जहान में
डरने से कभी न कोई जीता है ना ही कोई जीत पायेगा
ऐसा होता अगर तो ये मुल्क फिर गुलाम हो जाएगा
बोलने वाले कई आते हैं मूर्खो की परिभाषा देने
बहुत से यहीं फ़स जाते है गुलाम की नई भाषा देने
लिख ले तु भी एसी एक परिभाषा आज
जिसकी कोई कीमत ना हो
बाँध ले किस्मत की डोर से
जैसे कभी ना खुल पाना हो
फिर दिखा इस दुनिया को अपना जलवा कि
मजबूर हो जाए कहने को कि आया है कोई अब मेहनत की नई परिभाषा देने ।
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